द हाॅन्टिंग मर्डर्स : पार्ट - 4
"क्या बच्चों की तरह डर रहे हो, मयंक! मेरा 8 साल का भतीजा भी तुम से ज्यादा बहादुर है।" - डेस्क पर से अपना सामान समेटते हुए नीरज ने मयंक को ताना मारते हुए कहा
"मैं डर नहीं रहा हूं, सर! बस थोड़ा प्रैक्टिकल सोच रहा हूं, कोई भी मिल सकता है इस वक्त हमें वहां पर?" - मयंक उसी तरह डरे हुए अंदाज ने बोला
"कोई भी मतलब कि शायद खूनी भी..." - नीरज रोमांचित स्वर में बोला
"अरे नहीं सर! आप ने सुना नहीं क्या भूत प्रेत भी हैं वहां पर ऐसा सब बोलते हैं और इसलिए ही तो शायद हमें अब तक कोई सबूत नहीं मिला क्योंकि हो सकता है वह सारे खून किसी इंसान ने नहीं बल्कि किसी...." - मयंक सब कुछ सोचता हुआ सा घबराहट में बोलता गया और उस के माथे पर पसीने की बूंदें भी उभर आई लेकिन नीरज पर जैसे उस की बातों का कोई फर्क नहीं पड़ा हो और उस ने बोरियत से एक जम्हाई ली और बोला - "इस से अच्छा तो तुम घर जा कर सो ही जाते मयंक! मुझे भी नींद आ रही है अब तो तुम्हारी बातों से..."
"अरे सर! मैं... मैं भी नहीं मानता भूत प्रेत में, लेकिन हमारे गांव में ना एक बार ऐसा हुआ था..." - मयंक फिर से कुछ बोलने को हुआ तो नीरज उसे डांट कर चुप कराता हुआ बोला - "तुम और तुम्हारे गांव के किस्से मयंक! चुप करो तुम, बस इतना बताओ मेरे साथ आ रहे हो अभी या नहीं?"
"जाने से पहले टीम को इन्फॉर्म कर देते हैं सर!" - मयंक अपनी सारी हिम्मत बटोर कर आखिरकार नीरज के साथ जाने के लिए तैयार होता हुआ बोला
"हां, ठीक है कर दो इनफॉर्म; लेकिन सिर्फ दो या तीन लोगों को ही करना, बाकी सब को इमरजेंसी होने पर ही इन्फॉर्म करने के लिए बोलना अदरवाइज नहीं..." - नीरज ने मयंक को पूरी बात समझाई
"ओके सर!" - बोलते हुए मयंक ने भी अपना कुछ सामान उठाया और दोनों आ कर जीप में बैठ गए मयंक जीप ड्राइव करने लगा और नीरज उस के बगल में बैठा कुछ सोच रहा था।
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"थैंक गॉड! रोज़ी आंटी एक बार भी चेक करने नहीं आई यहां पर..." - तृषा दबे पांव अपने कमरे के अंदर आती हुई बोली
"आई थी यार!" - तृषा की बात सुन कर उस की रूममेट आरती ब्लैंकेट से अपना चेहरा बाहर निकालती हुई बोली
वो एक सामान्य से दिखने वाले, दो मंजिला मकान का एक कमरा था जिस के एक कमरे में तृषा अपनी रूममेट आरती के साथ शेयरिंग रेंट पर रहती थी, रोज़ी आंटी उस घर की मालकिन थी।
उस कमरे में काफी कम सामान था, लेकिन जितना भी था काफी ढंग से और सलीके से रखा हुआ था और कमरे के बीच में दो सिंगल बेड पड़े हुए थे और उन में से एक बेड पर एक लड़की मुंह तक ब्लैंकेट ओढ़ कर लेटी हुई थी। तृषा की आवाज सुनकर उस लड़की ने ही जवाब दिया था। और दूसरा बेड जो कि शायद तृषा का था वह खाली ही था अब तक;
"ओ माय गॉड! फिर क्या हुआ, संभाल लिया ना तूने?" - तृषा दोनों हाथ अपने गालों पर रखती हुई बड़ी उम्मीद के साथ आरती की तरफ देखती हुई बोली
"हां, बोल दिया था कि तेरा पेट खराब है और तू बाथरूम में है।" - आरती ने उसे बताया
"थैंक गॉड यार! तू नहीं होती तो क्या होता मेरा?" - तृषा आगे बढ़कर आरती के गले लगती हुई बोली
"अब तक निकाली जा चुकी होती तो यहां से और क्या?" - आरती उस के गले लगी हुई मुस्कुराती हुई बोली
"ये मोहित का बच्चा है ना सब इस की वजह से ही होता है, उसे हमेशा हर जगह जाने का शौक शाम को सूरज ढलने के बाद ही चढ़ता है।" - तृषा अपने बेड पर बैठती हुई अपने हाथ से अपनी गर्दन और कंधे को दबाती हुई बोली
"हां, सब कुछ मोहित की वजह से ही तो है तेरी लाइफ में अच्छा भी और बुरा भी..." - आरती, तृषा की बात सुन कर बोरियत से बोली और वापस अपना चेहरा ढक कर अपने बेड पर लेट गई, लेकिन आरती की बात सुन कर तृषा के चेहरे पर एक प्यारी सी स्माइल आ गई, मोहित के नाम से लेकिन थोड़ी देर बाद ही वह स्माइल गायब हो गई और वह उस का ख्याल अपने दिमाग से झटकती हुई खुद से बोली - "सच में सारी प्रॉब्लम्स होती भी तो मोहित की वजह से ही हैं, अपनी वजह से तो मैंने कभी भी झूठ नहीं बोला!" और फिर वह भी बेड पर लेट जाती है और आंखें बंद कर के सोने की कोशिश करने लगती है, कुछ देर बाद तृषा को भी नींद आ जाती है।
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दूसरी तरफ मोहित अपने फ्लैट के एक डार्क रूम में कुछ कर रहा होता है और फिर वहां से निकल कर किचन में आ कर अपने लिए कॉफी बनाता है और उसे ले कर अपने कमरे में चला जाता है, उस का कमरा पूरी तरह से अस्त-व्यस्त और एक स्टोर रूम की तरह लगता है, लगभग हर तरफ से फैला और सामान बिखरा हुआ, कुछ बेड पर तो कुछ जमीन पर, वर्किंग डेस्क और स्टडी टेबल पर भी काफी सारा सामान फैला होता है।
इतना सब सामान बिखरा होने के बावजूद भी मोहित बेड पर आकर इस तरह से बैठ जाता है जैसे कि सारी चीजें अपनी जगह पर ही हो एकदम उस के हिसाब से जैसे कि उसे पसंद है या फिर उसे इन सब से कुछ फ़र्क ही ना पड़ता हो। रात के इस वक्त भी उसकी आंखों में नींद दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आ रही थी।
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"देखा सर, आपने कुछ भी नहीं मिला हमें यहां पर, बेकार हुआ हमारा तो इतनी रात को यहां आना।" - मयंक पता नहीं निराश होते हुए बोला या फिर चैन की सांस लेते हुए और वो ना जाने क्या चीज नहीं मिलने की बात कर रहा था कोई सबूत या फिर कोई भूत?
"कुछ भी बेकार में नहीं होता, रिमेंबर दिस!" - नीरज मयंक की बात पर बोला
"लेकिन क्या फर्क पड़ता, अगर हम कल सुबह आ जाते तो..." - मयंक ने फिर से पूछा
"अभी कमिश्नर सर के सामने तो इतनी बड़ी बड़ी बातें बोल कर आए हो मयंक और अब जब काम करने का मौका आता है तो फिर से वही काम चोरी और बहाने ढूंढने लगते हो काम से बचने के...." - नीरज उसे जैसे ताना मार कर याद दिलाते हुए बोला
"अरे सर, कमिश्नर सर! ने क्या कम सुनाया है आज जो आप भी अब शुरू हो गए, और करता तो हूं मैं काम अपनी सैलरी से ज्यादा ही..." - ताना मारने पर मयंक मुंह बनाते हुए बोला
"हां, वह तो दिख ही रहा है तुम ही तो करते हो सारा काम; मैं तो बस घूमने टहलने आया हूं यहां।" - नीरज फिर से उसी व्यंगात्मक लहजे में बोला
लेकिन मयंक इस बार चुप ही रहा और चुपचाप नजरें घुमा कर घर के बाहर जहां पर वह लोग खड़े थे, उस तरफ काफी ध्यान से देखने लगा और कुछ ढूंढने की कोशिश करने लगा।
नीरज मयंक को ऐसे देख कर हल्के से मुस्कुराया और आगे की तरफ बढ़ने लगा, वह अंदर की तरफ ही बढ़ रहा था कि तभी नीरज की नज़र जमीन पर पड़ी हुई किसी चीज़ पर पड़ी तो वो उस तरफ ही बढ़ गया और उस ने झुक कर वो चीज जमीन से उठा ली और फिर उसे देख कर कुछ सोचने लगा।
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मोहित की आंख बस कुछ समय पहले लगी है थी कि उसके फ्लैट की डोर बेल बजी - "क्या हो गया, अब यह सुमित के बच्चे को... आज फिर से फ्लैट की कीज़ ले जाना भूल गया था क्या?"
डोर बेल की आवाज सुन कर मोहित आंखें मलते हुए बड़बड़ाता हुआ बेड से उठा और नींद में ही मेन गेट तक पहुंच कर उस ने दरवाजा खोला और ठीक से बिना देखे ही कि आखिर कौन है उस के दरवाजे पर, वह वापस मुड़ कर अंदर की तरफ आने लगा।
"अरे! ना हाय, ना हैलो, ना वेलकम... गुड मॉर्निंग तो बोल देता कम से कम? बिल्कुल मैनरलेस होता जा रहा है तु।" - पीछे से तृषा की आवाज सुन कर मोहित चौंक गया और रुक कर पीछे मुड़ा तो उस ने देखा कि सुमित नहीं, यह तो तृषा थी।
अब तक जो मोहित आधी नींद में था; अब उस की आंख लगभग पूरी तरह से खुल चुकी थी और वह तृषा की तरफ देखते हुए बोला - "पिंच मी! मैं सपना देख रहा हूं शायद..."
"शट अप मोहित! सपना नहीं है यह और तुझे कुछ बताना था और तू कॉल भी रिसीव नहीं कर रहा था इसलिए आना पड़ा..." - तृषा मोहित को अपने सामने से हटा कर साइड करती हुई फ्लैट के अंदर आई और तब जा कर मोहित को यकीन हुआ कि वह कोई सपना नहीं देख रहा है तृषा सचमुच वहां पर थी।
"लेकिन तू इतनी रात को यहां? अब नहीं पता चलेगा तेरी रोज़ी आंटी को..." - फ्लैट का मेन डोर बंद कर के मोहित तृषा के पीछे आता हुआ बोला
"मतलब तू जब तक सो रहा होता है, रात ही होती है क्या तब तक? आंखें खोल और ज़रा घड़ी की तरफ देख एक नज़र..." - मोहित का सवाल सुन कर तृषा उसे ताना मारती हुई बोली
"मतलब कि सुबह हो गई..." - बोलते हुए मोहित घड़ी की तरफ पलटा और वॉल क्लॉक में टाइम देखता हुआ कुछ बोलने ही वाला था कि तभी पीछे से आती हुई तृषा बोल पड़ी - "सुबह नहीं दोपहर बोल 11:30 बज रहे हैं।"
"अरे लेकिन मैं तो बस अभी काम खत्म कर के सोया था इतनी जल्दी 11:30 कैसे बज गए? घड़ी ख़राब हो गई है शायद..." - मोहित चकराया हुआ सा बोला
"घड़ी नहीं तेरा दिमाग खराब हो गया है शायद और अभी मतलब, कब सोया तु और पूरी रात काम कर रहा था क्या? तू ना पागल है मोहित या तो फिर हो जाएगा किसी दिन..." - तृषा मुंह बनाती हुई बोली
"अभी मतलब सुबह के 5:00 बजे, अभी थोड़ी देर पहले ही तो सोया था मैं।" - मोहित तृषा की बात का एकदम आराम से जवाब देता हुआ बोला
"यू आर इनसेन मोहित! तू और तेरे यह जासूसों वाले काम और आदतें भी सारी वैसी ही होती जा रही हैं।" - बोलते हुए तृषा अब तक मोहित के किचन में आ चुकी थी।
"हां, तो जिस में इंटरेस्ट है वैसी ही हरकतें करता हूं ना तू अपना देख कितनी कंफ्यूज रहती है। कभी बोलेगी यह करना है, कभी वह; एक चीज पर तो टिकती ही नहीं तु..." - मोहित उस के सामने खड़ा होता हुआ बोला
"ऐसा कुछ नहीं है मुझे बस जिस वक्त जो सही लगता है वह करती हूं। हां, इतनी ज्यादा पैशनेट नहीं हूं किसी चीज को लेकर तेरी तरह, लेकिन फिर भी कुछ ना कुछ तो करती ही रहती हूं ना..." - तृषा लापरवाही से बोली और अपने लिए कॉफी बनाने लगी।
"वैसे क्या इंपॉर्टेंट बताना था तुझे केस के लिए, कुछ बोल रही थी तू अंदर आते वक्त..." -; मोहित ने अब उस से सवाल किया
"हां यार! सब भूल जाती हूं मैं तेरे चक्कर में, दो बातें बतानी है सब से पहले तो यह कि इस केस के बारे में कुछ अलग पता चला है पुलिस को, पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स आने के बाद और दूसरी बात थोड़ी टेंशन वाली है..." - अपने लिए मग में कॉफी निकाल कर मोहित की तरफ आती हुई तृषा उस से नजरें चुराती हुई बोली
"वह तो तेरे बात करने के अंदाज से ही समझ आ रहा है मुझे अब बता क्या कांड कर दिया तूने बैठे-बिठाए?" - मोहित ने तृषा की तरफ शक भरी निगाहों से देखते हुए उस से पूछा
क्रमशः
Seema Priyadarshini sahay
15-Jan-2022 09:40 PM
👌👌बेहतरीन भाग
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Simran Ansari
31-Jan-2022 01:03 PM
Thanks man
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